सरसों की फसल रबी की फसल होती है। किसान इस फसल की खेती से अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे है। देश के कई राज्यों जैसे राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। लेकिन राजस्थान में प्रमुख रूप से भरतपुर, सवाई माधोपुर, अलवर, करौली, कोटा, जयपुर और धौलपुर आदि जिलो में किसान सरसों की बुवाई कर रहे है। किसानो को इस फसल की खेती से अच्छे भाव मिल रहे है। तथा वह इस खेती से दुगना पैसा कमा रहे है।
इस खेती में जलवायु
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सरसों की खेती शरद ऋतू के की जाती है। अच्छे उत्पादन के लिए 15 से 25 सेल्सियस तापमान की जरुरत पड़ती है।
मिट्टी कैसी होइनी चाहिए
इस खेती के लिए सभी प्रकार की मिटटी अच्छी मानी जाती है। लेकिन बलुई दोमट मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है. यह फसल हल्की क्षारीयता को सहन कर सकती है. लेकिन मिट्टी अम्लीय को सहन नहीं कर पाती है।
सरसों की उन्नत किस्में
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- आर एच 30 : सिंचित व असिचित दोनो ही स्थितीयों में गेहूं, चना एवं जौ के साथ खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
- टी 59 (वरूणा):- इसकी उपज असिंचित क्षेत्र में 15 से 18 हेक्टेयर होती है. इसमें तेल की मात्रा 36 प्रतिशत से भी अधिक होती है।
सरसों की बुवाई का समय
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सरसों की बुवाई के लिए उपयुक्त तापमान 25 से 26 डिग्री सेल्सियस तक होना उचित रहता है। बारानी में सरसों की बुवाई 05 अक्टूबर से 25 अक्टुबर तक कर दी जाती है। सरसों की बुवाई कतारो में करना ज्यादा अच्छा रहता है। कतार से कतार की दूरी 45 सें. मी. तथा पौधों से पौधें की दूरी 20 सें. मी. होनी चाहिए। इसके लिए सीडड्रिल मशीन का उपयोग करना चाहिए. सिंचित क्षेत्र में बीज की गहराई 5 से.मी. होना जरुरी होता है।
सरसों की खेती से मुनाफा
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एक एकड़ में सरसों की बिजाई पर 4000 रुपए खर्चा आता है। इससे 12 से 15 क्विंटल सरसों प्राप्त की जाती है। जो चार से पांच हजार रुपए प्रति क्विंटल बिकती है। इससे 50 से 60 हजार रुपए की कमाई की जा सकती है।